बहुत याद आता है अपना गाँव, गलियारा और गूलर
नहीं भूल सकता मैं कभी अपना बचपन, बदमाशी और गूलर की सब्जी
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के रायबरेली जिले के निवासी वीर प्रकाश चौरसिया वर्तमान में लखनऊ स्थित एक इन्फॉर्मेशन टेक्नालजी कंपनी मे कार्यरत हैं। डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय से बैचलर ऑफ टेक्नालजी, मास्टर ऑफ बिज़नेस एड्मिनिसट्रेशन और तीन वर्ष से अधिक समय का वेब डिज़ाइनिंग मे अनुभव है।
गूलर का नाम तो आप सभी लोग जानते होंगे। मैं नहीं जानता कि आप में से कितने लोगों को मालूम है, कि गूलर की बेहद स्वादिस्ट सब्जी भी बनती है। हमारी बेहद अपनी देसी कहावतों और किस्से-कहानियों में भी गूलर निहायत ही आत्मीयता के साथ मौजूद है। लम्बे समय के बाद किसी से मिलने पर जब यह सुनने को मिलता है कि “आप तो गूलर का फूल हो गए” तो इसमें काफी समय से न मिलने की कसक के साथ ही अपनापन भी साफ झलकता है।
गूलर का फूल देखने का सपना हम बचपन से ही संजोते रहे हैं। छोटे थे तो हमें बताया जाता था कि अगर एक बार हमने गूलर का फूल देख लिया तो हमारी सभी इच्छाएं पूरी हो जाएंगी। ये भी हमने सुना था कि गूलर के फल को खाने से आंखों की रोशनी तेज होती है।
कहने का मतलब सिर्फ इतना सा है कि गूलर का पेड़ हमें बचपन से ही हैरान करता रहा है। इन हैरानियों को दूर करने के लिए हम भी उसकी एक डाली से दूसरी डाली पर फुदकते रहे हैं। कहते हैं कि रात में इस पर चुड़ैल भी बैठती है, वो इसलिए कि इसका पेड़ बहुत ऊंचा होता है और बच्चे इस डर से इस पर न चढ़ें। लेकिन हम लोगों को पता था कि चुड़ैल दिन में पेड़ पर नहीं रहती है तो हम पेड़ पर चढ़ कर बहुत सारी गूलर तोड़ कर लाते थे।
गूलर का फल जब कच्चा होता है तो यह हरा रहता है। पकने पर यह फल गुलाबी रंग का हो जाता है। इसमें एक अलग खुशबू और मिठास आ जाती है। लेकिन पता है जब ये पक जाता है तो इसके अंदर सैकड़ो कीड़े निकलते हैं। क्योंकि गूलर के फल में छेद करके एक छोटा सा कीट उसमें ढेर सारे अंडे दे देता है। जब अंडे में से बच्चे निकलते हैं और उस समय अगर गूलर को बीच से तोड़ें तो ढेर सारे कीट उसमें से बाहर आने लगते हैं। इसलिए पके गूलर तो हम लोगों ने कम ही खाया और कच्चे गूलर तो कड़वे नमक के साथ भरपूर खा जाया करते थे। जब हम लोग खूब सारे गूलर तोड़ कर लाते तो उनकी सब्जी बन जाती थी। इतनी स्वादिस्ट सब्जी बनती थी कि उंगलिया चाटते रह जाएँ।
जब कच्चे गूलर को उबाल कर बेसन के साथ पकाया जाता है तो उसकी खुशबू ही बदल जाती है। आज वह सब्जी बहुत याद आती है। जब भी याद आती है उसको खाने की एक बेचैनी सी उठती है जिसको मुह में पानी आना कहते हैं।
कुछ ऐसी अनोखी चीजें हमेशा याद रहती हैं जो आपको कभी-कभी ही खाने को मिलती है और अगर वो आपकी मनपसंद हो जाए तो कुछ ज्यादा ही याद आती है। मेरी तो ऐसी आदत है कि अगर कोई चीज़ ज्यादा स्वादिस्ट बनी है तो भूख ख़त्म ही नहीं होती।
इसकी सूखी और रसेदार दोनों तरह की सब्जी बनती है। मेरे घर में ज़्यादातर सूखी सब्जी ही बनी क्योंकि वही सबको ज्यादा पसंद है। सब्जी कोई भी हो सूखी सब्जी में सब्जी का खुद का स्वाद निखर कर आता है न की मसालों का।
जब मौसम होता है तो गूलर के तने और डालियां कैसे गुच्छे के गुच्छे गूलरों से लद जाते हैं। अपने तनों में इस तरह से तो फिर कटहल ही फलता है। कटहल भी अपने फल देने के लिए इतना ज्यादा लालायित होता है कि जहां-तहां से कल्ला निकालकर फूट पड़ता है।
कुछ इसी तरह गूलर भी इस धरती को अपने फलों से सराबोर कर देना चाहता है। अपने बीजों को फैला देना चाहता है। और न जाने कितने जानवर, पक्षी और जीव-जंतु इन फलों और पेड़ों पर पनपते हैं। उनकी पूरी दुनिया ही इस पेड़ के इर्द-गिर्द घूमती है। मसलन उस कीट की जो गूलर के फल में ही सुराख करके के अपने अंडे देती है और बच्चे उसी में पलने के बाद खुद ही बाहर निकल आते हैं।
अंजीर प्रजाति का यह पेड़ दुनिया के कई सारे देशों में बेहद लोकप्रिय है। हमारी तो छोड़िए जंगलों में बंदरों, लंगूरों जैसे तमाम जानवरों को भी, जिन्हें हम अपना पूर्वज मानते हैं, उन्हें भी गूलर बेहद पसंद है।
Its a popular belief if the flower of the Gular tree gets added to something the thing beomes everlasting. Its a popular myth. Màa used to say.