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गाँव घर में छुपा पोषणTasty Treasure

ऊँमी से freekeh तक

By
Dietitian Amika
Published: April 10, 2019
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ऊँमी से Freekeh तक - Aahar Samhita by Dietician Amika
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बात चले गेहूँ की तो दलिया, घुघरी, गुड़ धनिया, प्रचलित हैं या फिर चलन है गेहूँ के आटे से बने विविध व्यंजन जैसे रोटी, पूड़ी, पराठा, हलवा और इस तरह के कई और। पर जब बात हो गेहूँ की हरी बालियों की तो एक और चीज़ जो बहुत पुराने समय से प्रचलन में रही है और आज भी कुछ क्षेत्र विशेष में प्रचलित है वो है ऊँमी। ऊँमी से मेरा पहला परिचय मेरे माँ-पापा ने करवाया। माँ-पापा ने हमें बचपन में खुद गाँव ले जाकर वहाँ सामने ऊँमी बनवाकर खिलवाई है। मेरे निजी अनुभवों के अनुसार शहरों की अपेक्षा इसका चलन ग्रामीण अंचल में ज्यादा रहा है। ऊँमी गेहूँ के हरे दानो की होती है। हो सकता है हमारे देश के अलग क्षेत्रों में इसके अलग नाम हों पर मुझे इसकी जानकारी नहीं है। कई अन्य देशों में यह freekeh नाम से एक सुपर फूड के रूप में कई स्वास्थ्य लाभ गिनाते हुए पैकेट बंद उत्पाद के रूप में पूरे साल बाज़ारों में उपलब्ध है।

ये गेहूँ के आग में भुने हरे दाने होते हैं। जिसके लिए गेहूँ की हरी बालियों को आग जलाकर सीधे आँच में भूना जाता है जिससे गेहूँ के ऊपर का छिलका लगभग जल जाता है। फिर इसे थोड़ा ठंडा करके किसी चीज़ से रगड़कर छिलके से दानों को अलग करते हैं। फिर सूप में फटककर छिलके पूरी तरह से हटाते हुए दाने अलग कर लिए जाते हैं। इसे लोग यूं ही या फिर नमक जो की वास्तव में या तो तीखी चटनी होती है या फिर नमक में कुछ और चीज़ें मिलाकर बनाया हुआ होता है से खाते हैं। इसका एक और रूप भी है जिसमे इन भुने हुए गेहूं के दानों को लहसुन, सूखी खड़ी लालमिर्च और नमक के साथ इमामदस्ते (Mortar and Pestle) में कूटते हैं। डाले गए मसाले अच्छी तरह से कुट जाने पर इसमे थोड़ा कच्चा सरसों का तेल डालकर थोड़ा और कूटते हैं। और इस तरह से तीखी ऊमी खाने के लिए तैयार होती है। इसके लिए उन हरी बालियों को चुनते हैं जिनके दाने हरे होने के साथ थोड़े मजबूत हो जाते हैं। बालियाँ परिपक्व अवस्था में पहुँचने के बहुत करीब होती हैं पर हरी होती हैं।

यह भी पढ़ें–

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प्राप्त जानकारी के अनुसार यहाँ ज्यादा चलन गेहूं के भुने हरे दानों को नमक के साथ खाने का ही मिलता है। अन्य देशों में कई तरह के व्यंजन में इसका इस्तेमाल होता है। इमाम दस्ते में कूटकर बनी तीखी ऊँमी जिसे मैंने अपने बचपन से लेकर आज तक बहुत बार खाया है की वास्तव में एक समुदाय / परिवार विशेष की अपनी व्यंजन विधि है या किसी प्रांत या क्षेत्र में ऐसे बनती रही है यह कह पाना थोड़ा मुश्किल है। एक बात और माँ ने बताई कि गेहूं के इन भुने हरे दानों को जरूरत के अनुसार साल भर के लिए घरों में स्टोर करके रखने का भी चलन था। व्यावसायिक रूप में वही चलन अन्य देशों में दिख रहा है।

ऊँमी पर चर्चा करना अस्तित्व खोती जा रही ऐसी रेसिपी को याद करना है जो निश्चित ही यहाँ प्रचलन में रही है और बीमारियों खासतौर पर मौसमी बीमारियों से बचाव और रोकथाम के तौर पर भी देखी जाती रही है। अभी भी पहले से कम सही पर ये अस्तित्व में है जिसका चलन अब उतना नहीं है जितना की इससे संबन्धित जानकारियों की खोज करने पर अन्य देशों में पाया जा रहा है। हाँ, आज भी बहुत से लोग होलिका दहन के समय गन्ना, अलसी, जौ के साथ गेहूं कि बालियों को भी भून कर खाते हैं।

निश्चित ही कई स्वास्थ्य लाभ लिए हुए ये व्यंजन बहुत पारंपरिक और हमारे पूर्वजों ज्यादा नहीं अभी एक दो पीढ़ी पहले तक से बहुत जुड़ा रहा है। आज जब हम न्यूट्रीजेनेटिक्स और न्यूट्रीजेनोमिक्स की बात करते हैं, व्यक्तिगत शरीर रचना के लिए किस तरह का भोजन उपयुक्त है, हमारे खानपान की क्या परंपरा रही है, व्यक्तिगत तौर पर उसमे क्या बदलाव और उसका व्स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव पड़ रहा है, इंडिजिनस डाइट, गो बैक टू डाइटरी रूट्स, की चर्चायें हैं; तो इनके बीच इसे याद तो किया ही जा सकता है।

नोट-

इस लेख का उद्देश्य जानकारी और चर्चा मात्र है। आहार में एकदम से बदलाव या जीवन शैली में परिवर्तन विशेषज्ञ से परामर्श का विषय है।

बहुत याद आता है अपना गाँव, गलियारा और गूलर
मकोय है मिनेरल्स का अच्छा स्रोत
भुने चने के साथ लहसुन – हरी मिर्च की चटनी क्या कहने
शरीफा – पहचान खोता गुणकारी फल
तहरी – द सर्जिकल स्‍ट्राइक
TAGGED:disheseatingFoodFreekehIndigenous dietlife stylememoirenatures treasureReciperegional foodTasty TreasureWheatऊँमी
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Interest and efforts to know about science-technology, health – life – related issues, ailments and dietary aspects, addition of knowledge about sociological, psychological, spiritual, melody, happiness, emotional balance, crafts and art, economical management, opportunities to see the life style of people from different strata, keen to provide educational support to who in need in personal capacity directed my educational and profession life…
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