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गरम खाओ या ठंडा, ये स्वाद देगा चंगा

श्रीमती बबिता होसैन
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श्रीमती बबिता होसैन
Published: December 18, 2018
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गरम खाओ या ठंडा, ये स्वाद देगा चंगा - Aahar Samhita by Dietician Amika
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  • श्रीमती बबिता होसैन
    व्यवसायी, गृहणी और समाज सेवी

    बचपन की यह याद हमारे साथ शेयर की है कूच बिहार निवासी श्रीमती बबिता होसैन ने। व्यवसायी और गृहणी होने के साथ ही बबिता जी समाज सेवी भी हैं। समाज के वंचित तबके के कल्याण के लिए परिवारिजनों के साथ मिलकर विभिन्न प्रयास करती रहती हैं। बबिता जी मानती हैं कि अगर समाज के सभी वर्ग के बच्चों को शिक्षा के समान और बेहतर अवसर उपलब्ध कराये जाएँ तो समाज को विकास की नयी ऊँचाइयाँ दी जा सकती हैं, साथ ही समाज में व्याप्त तमाम बुराइयों को भी आसानी से दूर किया जा सकता है।

बचपन, किसी भी व्यक्ति की तरह मेरे भी जीवन का बेहद प्यारा और खुशनुमा दौर रहा है। निश्चित ही हम बहुत छोटे से शहर से हैं, लेकिन ऐतिहासिक दृष्टि से हमारा कूच बिहार विश्व-प्रसिद्ध है। कूच बिहार का राजघराना विश्व के चुनिन्दा राजघरानों में है। यह जयपुर की महारानी गायत्री देवी का मायका है। क्या दौर था बचपन का… क्या लोग थे… इस दौर में अधिकतर परिवार संयुक्त ही हुआ करते थे। इस कारण से परिवारों में सदस्यों की संख्या बड़ी हुआ करती थी। शहर में शांति और सौहार्द्र, लोगों में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग भरपूर हुआ करता था।

इस दौर में भले ही लोगों की जेब में पैसे ज़्यादा नहीं होते थे लेकिन जिधर भी नज़र डालेंगे लोगों के चेहरे पर खुशी, उल्लास और संतुष्टि साफ दिखाई पड़ती थी। लोगों में अपनापन था, एक-दूसरे के सुख-दुख में बराबर से शरीक़ होते थे। जाति, धर्म और सम्प्रदाय से इतर सभी सबके तीज-त्योहार पूरे हर्षोल्लास से मानते थे।

बचपन की यादों में गोता क्या लगाया बहुत सी बातें आँखों के सामने किसी सिद्धहस्त फिल्म निर्देशक द्वारा बनाई फिल्म की तरह तैरने लगीं। मन फिर उसी दौर को जीने का करने लगा।

ख़ैर, बाकी सब बातों को थोड़ा रोकते हैं और मुद्दे पर लौटकर यहाँ बात करते हैं बचपन के पसंदीदा व्यंजनों की। बचपन के उस दौर में समाज में बाहर जाकर खाने का इतना चलन नहीं था। इसके मेरे हिसाब से दो कारण रहे होंगे। पहला, इतने लोगों को एक साथ लेकर जाना काफी मुश्किल था और दूसरा इसमें जो खर्च आता उस से कहीं कम खर्च में यह इंतजाम घर में सबके लिए आसानी से किया जा सकता था।

हाँ, घर पर हम लोगों को पूरी आजादी हुआ करती थी खाने में नए-नए प्रयोग करने की। इसका हम सब बच्चे भरपूर फायदा उठाया करते थे। हम अपने ख़्यालों में तमाम तरह के पकवानों की ‘डिज़ाइन’ तैयार करते रहते थे। इसके बाद घर के बड़ों के अनुभव की सहायता से उस नयी डिश को तैयार करते थे। चूंकि परिवार संयुक्त थे इसलिए थोड़ी मात्रा में बनाने से काम नहीं चलने वाला था। जो भी बनाना था भरपूर मात्रा में ही तैयार करना होता था। इसलिए भी बड़ों के मार्गदर्शन और सहायता की ज़रूरत होती थी।

हाँ, हम बच्चों का यह नया प्रयोग जब घर के सभी सदस्यों को खाने के लिए परोसा जाता था तो परिणाम का अंदाज़ा लोगों के चेहरे देखकर आसानी से समझा जा सकता था। सभी के चखने के बाद बस दो ही तरह के रिस्पोंस मिला करते थे। पहला, वाह! दिल खुश कर दिया बोलो क्या इनाम चाहिए… और दूसरा, बेटा पढ़ाई-लिखाई कैसी चल रही है, खूब मेहनत करो अच्छे नम्बर आने चाहिए।

इस दौर के मेरे दो बेहद पसंदीदा व्यंजन हैं। पहला आलू की टिक्की- बाज़ार जाकर ठेले वाले से बनवाकर टिक्की खाने का जो आनंद हैं उसे शब्दों में बयान कर पाना काफी मुश्किल है। वो आलू की करारी टिक्की और उस पर दही, चटनी, प्याज, हरी मिर्च, हरा धनिया और ऊपर से पड़ने वाला चाट मसाला, याद आते ही मन खाने के लिए मचल उठता है। घर में आलू की टिक्की कई बार बनाई और सबको खिलाई। सबने तारीफ भी बहुत की लेकिन एकदम वैसा स्वाद नहीं आ पाया।

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अब यहाँ जो मैं आप सबके साथ शेयर करना चाहूंगी, वह भी मेरा दूसरा बेहद पसंदीदा व्यंजन है। यह है दूध, ब्रेड, खोया, पिस्ता और बादाम से बना एक बेहद स्वादिष्ट व्यंजन। बनाने की विधि कुछ इस प्रकार थी…

एक तरफ ज़रूरत के हिसाब से दूध को खौलाकर खूब गाढ़ा किया जाता था। दूसरी तरफ ब्रेड को खौलते हुये घी में तलकर खूब क्रिस्पी कर लिया जाता था। दूध गाढ़ा हो जाने के बाद फ्राई हुयी ब्रेड को इस दूध में थोड़ी देर के लिए डाल दिया जाता था, जिससे ब्रेड दूध को खूब अच्छे से सोक कर ले। इसके बाद सभी ब्रेड को एक बड़े बर्तन में बराबर से रख दिया जाता था। अब सभी पर खोये की एक लेयर लगा दी जाती है। इसके बाद मेवे से गार्निशिंग की जाती है। अब यह व्यंजन ज़बान के जरिये हमारे-आपके दिलों पर छा जाने के लिए तैयार है।

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इस व्यंजन की एक और खास बात है। इसे आप अपनी सुविधा और स्वाद के हिसाब से गरम और क्रिस्पी रूप में भी खा सकते हैं। और, चाहें तो इसे फ्रिज में रखकर ठंडा कर लीजिये और फिर खुद भी खाइये और मेहमानों को भी खिलाइये। दोनों तरह से इसका स्वाद बेहद लाजवाब लगता है। उम्मीद करती हूँ कि यह आप सबको भी खूब पसंद आएगा। कमेन्ट बॉक्स के जरिये आपके रिस्पोंस का मुझे इंतज़ार रहेगा।

आप भी खाने से जुड़ी अपने बचपन की यादों को हमारे साथ साझा कर सकते हैं। लिख भेजिये अपनी यादें हमें amikaconline@gmail.com पर। साथ ही अपना परिचय (अधिकतम 150 शब्दों में) और अपना फोटो (कम से कम width=200px और height=200px) भी साथ भेजें।

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Byश्रीमती बबिता होसैन
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