गुलगुला ऐसो जिया में समाय गयो रे…
सिर्फ व्यंजन नहीं नयी ज़िंदगी की शुरुआत भी है गुलगुला
पेशे से पत्रकार शालिनी पाण्डेय दुबे वर्तमान में आकाशवाणी (आल इंडिया रेडियो) मुंबई में बतौर अनाउंसर कार्यरत हैं। लखनऊ निवासी शालिनी ने बतौर पत्रकार अपने करिअर की शुरुआत लखनऊ से निकलने वाले एक हिन्दी दैनिक से की। सामाजिक मुद्दों को जितनी संजीदगी के साथ अपने शब्दों के जरिये शालिनी कागज़ पर उकेरती हैं उतनी ही गंभीरता और परिपक्वता उनके राजनीति से लेकर सिनेमा पर लिखे लेखों में दिखती है। शालिनी ने अपने बचपन की यादों के पिटारे से एक बेहद छोटा हिस्सा हमारे साथ साझा किया है। आइये शालिनी के शब्दों के जरिये हम-आप भी उनके बचपन की सैर करते हैं और जानते हैं कि उनके बचपन की बेहद पसंदीदा डिश कौन सी थी...
शालिनी पाण्डेय दुबे। बचपन की यादें हम-आप सभी के दिल-ओ-दिमाग के किसी कोने में ताउम्र महफूज़ रहती हैं। ज़रूरत होती है बस यादों की इन परतों को खोलने की। आज की भागमभाग भरी ज़िंदगी में समय की कमी के कारण हम-आप को बचपन की यादों के समंदर में गोता लगाने का मौका ही नहीं मिलता।
दूसरे शब्दों में कहें तो हम दुनियादारी में इतने मशगूल हो गए हैं कि बचपन की इन हँसाती-रुलाती और गुदगुदाती यादों को गाहे-बगाहे याद करने को हमने अपनी प्राथमिकता सूची से निकाल फेंका है। बचपन हम सभी के जीवन का ऐसा हिस्सा/दौर होता है जिसे अक्सर फिर से जीने का मन करता है।
इसे याद करने के लिए करना भी ज़्यादा कुछ नहीं होता… बचपन की यादों को मन ही मन आवाज़ लगायें… पूरा बचपन, पापा से घुमाने की ज़िद हो या माँ से मनपसंद खाने की फरमाइश, स्कूल न जाने के नित नए बहाने हों या गर्मियों की छुट्टी में गाँव जाने की जल्दी, नानी-दादी की कहानियाँ हों या नाना-बाबा का लड़-दुलार सब कुछ हमारे मानस पटल पर ऐसा उभरता है मानो सत्यजीत रे साहब का कोई बेहद कसा और सधा हुआ चलचित्र चल रहा हो।
ऐसा शायद ही कोई व्यक्ति होगा जो बचपन की इन खट्टी – मीठी यादों में गोते लगाकर खुश न होता हो। ये यादें होती ही हैं इतनी अनमोल कि इन्हें संजोकर ताउम्र रखने की हसरत हर कोई रखता है लेकिन आज के दौर में इस भागमभाग भरी ज़िंदगी में अपने और अपनों के सपने पूरे करने की जद्दोजहद में लगा हर व्यक्ति बचपन की यादों से दूर होता जा रहा है।
दूसरी ओर है आज का बचपन, यह पहले के बचपन से बेहद अलग है। आज के बचपन को निगल लिया है इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स ने। आज के बच्चे अपना अधिकतम समय मोबाइल और आईपैड में ही लगा देते हैं । अब अभिभावकों को ही आगे आकर बच्चों की इस लत को दूर करना होगा तभी बच्चे बाहरी दुनिया से जुड़ाव बना पाएंगे।
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बचपन की यादों की तरफ अगर हम झाँकते हैं तो परत दर परत खुलती जाती है । ऐसे में बात हो जब पकवानों की, तो कई पकवान ऐसे होते थे जो ख़ास मौकों पर बनाए जाते थे और आज भी इन पकवानों ने अपनी जगह बनाई हुई है रसोई घरों में। मुझे याद है कि कोई भी ख़ास मौका होता था तो गुलगुला ज़रूर बनता था। बड़े चाव से खाते थे घर के सभी सदस्य, फिर वो चाहे बच्चे हों या बड़े-बुज़ुर्ग। ये पकवान है ही ऐसा कि आज भी लोग इसे बेहद पसंद करते हैं।
गेहूँ के आटे में शक्कर या गुड़ के साथ पानी मिलाकर रात में ही रख देते हैं फिर अगले दिन इस मिश्रण को अच्छी तरह फेंटकर इसमें काजू, किशमिश, बादाम और इलाइची के दाने डालते हैं। अगर किसी को नारियल पसंद है तो इसे भी कद्दूकस करके डाल सकते हैं। फिर गैस पर कड़ाही रखकर उसमें तेल डालकर इस मिश्रण को गोल आकार देते हुए डालते हैं। जब इसका रंग भूरा होने लगे तो पलटकर दूसरी तरफ कर देते हैं जिससे दोनों तरफ से अच्छी तरह से पक जाए।
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बस तैयार है गरमागरम गुलगुला। निश्चित ही स्वाद में देसी मिठास लिए यह गुलगुला आप और आपके परिवार के सदस्यों के बीच संबंध रूपी मिठास को भी नए आयाम देने में सक्षम है। अगर ऐसा नहीं होता तो नयी बहू से पहले पकवान के तौर पर गुलगुला बनवाने की रवायत का जन्म ही नहीं हुआ होता। तो देर किस बात की है शुरू हो जाइए और सभी अपनों को गुलगुला खिलाकर ज़बान के रास्ते उनके दिलों में भरपूर मिठास भर दीजिये।