कद्दू और फूल दोनों हैं वेरी कूल
बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन से लड़ने में प्रभावी
कद्दू और उसके व्यंजन हर घर में प्रचलित हैं। चाहे कद्दू की सूखी सब्जी हो या रसेदार, सरसों के मसाले में हो या गरम मसाले में, पंचफोरन में पकाई जाये या सत फोरन में, हरे कद्दू की छिलके के साथ सब्जी हो या पके कद्दू की छिलका उतार कर बनाई हुई सब्ज़ी, कद्दू की खट्टी – तीखी सब्ज़ी हो या फिर खट्टी – मीठी मेवे वाली सब्ज़ी या फिर हो कद्दू का हलवा कोई न कोई व्यंजन हर घर में बनता ही है। जिस तरह से कद्दू का कोई न कोई व्यंजन हर घर में बनता है उतना ही उपयोग कद्दू के फूल का हर घर में नहीं है जबकि कद्दू के फूल के भी बहुत स्वादिस्ट व्यंजन बनते हैं।
पारम्परिक प्रचलित व्यंजन है जुट्टी
कद्दू के फूल की पकौड़ी जिसे जुट्टी भी कहते हैं पारम्परिक प्रचलित व्यंजन है। इसे सादा या भर के (स्टफ़्ड) दोनों तरीके से बनाया जाता है। कद्दू के फूल की पकौड़ी के लिए जो घोल (बैटर) तैयार किया जाता है वो कई तरह का होता है। पारम्परिक तौर पर चावल के आंटे और मसाले जिसमे मुख्यतः लहसुन, हल्दी, पिसी धनिया, मिर्च और गरम मसाला होता है; का घोल बनाया जाता है कुछ लोग इसे बेसन से भी तैयार करते हैं और मसाले भी इच्छानुसार होते हैं, मैदे का भी घोल बनता है जिसे विशेष तौर पर स्टफ़्ड पकौड़ों के लिए प्रयोग किया जाता है घोल में सिर्फ नमक और पिसी गोलमिर्च डाला जाता है। इसके अलावा कद्दू के फूल का साग या सब्जी भी बनाई जाती है। कद्दू के फूलों का सलाद में भी इस्तेमाल होता है।
कद्दू को अँग्रेजी में पंपकिन (Pumpkin), बंगाली – कुमरा (kumra), गुजराती – कोहलू (Kohlu), हिन्दी – कद्दू (kaddu), कन्नड़ – कुंबला (kumbala), कश्मीरी – पारिमल (paa’rimal), मलयालम – माथन (maathan), मराठी – लालभोपला (lalbhopla), उड़िया – काखरू (kakhru), पंजाबी – सीताफल (Sitaphal), तमिल – पारंगीक्कई (parangikkai), तेलगु – गुम्मड़ी काया (gummadi kaya), कहते हैं।
कद्दू और फूल पोषण की दृष्टि से
कैल्शियम और फोस्फोरस की उपस्थिति कद्दू के फूल में प्रमुख है। ये फाइबर का भी अच्छा स्रोत है इसके अलावा इसमें प्रोटीन और मिनेरल्स भी पाया जाता है।
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कद्दू और फूल स्वास्थ्य लाभ की दृष्टि से
बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन से लड़ने में कद्दू के फूल प्रभावी हैं। इस पर हुई रिसर्च से पता चलता है कि कद्दू के फूल का अर्क, बैक्टीरिया और फंगल इन्फेक्शन में दवाओं जितना ही प्रभावी है। बारिश से ठंड शुरू होने के बीच के मौसम में बैक्टीरिया और फंगस के संक्रमण की ज्यादा आशंका होती है। इसका सेवन संक्रमण से बचाव का एक अच्छा उपाय है। शायद इसके इसी महत्व को समझाने के लिए ही हिन्दू धर्म में दशहरे के दिन कद्दू और तरोई के फूल की पूजा भी होती है।
कद्दू का फूल एस टाइफी, ई कोलाई, ई फिकेलिस, बी सेरियस के संक्रमण से लड़ने में प्रभावी है।
एस टाइफी
यह टाइफाइड संक्रमण का कारक है। यह फूड प्वायज़निंग, आंत्रशोथ (गैस्ट्रोएंट्राइटिस), आंत्र – ज्वर (एंटेरिक फीवर) की भी एक वजह है।
ई. कोलाई
ये खूनी दस्त का कारक होते हैं। ई. कोलाई के कई प्रकार गंभीर एनीमिया, किडनी फेल्योर, मूत्र नली संक्रमण और अन्य इन्फेक्शन का भी एक कारक होते हैं।
ई फिकेलिस
यह तभी प्रभावी हो पाता है जब व्यक्ति में रोगों से लड़ने की ताकत कम हो जैसे रोग की या सर्जरी की अवस्था में। अस्पतालों में मरीजों को इसका इन्फेक्शन होने की आशंका रहती है। इससे सेप्सिस यानि रक्त विषाक्तता, हृदय की अंदर की परत में सूजन, मूत्र नाली संक्रमण, मेनिनजाइटिस जिसे दिमागी बुखार भी कहते हैं हो सकता है।
बी सेरियस
फूड प्वायज़निंग का एक कारक है जिससे पेट दर्द, उल्टी, दस्त की समस्या होती है।
केवल कद्दू के फल और फूल ही नहीं बल्कि कद्दू के बीज, कद्दू के किल्ले (बेल की मुलायम ऊपरी शाखा), मुलायम पत्ते का भी व्यंजन बनाने में इस्तेमाल होता है। कद्दू के पके बीज को कच्चा, भून कर या कई वयंजनों में ऊपर से डालकर खाया जाता है। कद्दू की बेल के किल्ले और पत्तों का साग कई विधियों से बनता है।