आम और जामुन के इस मौसम में मुख्यतः गाँव में एक और फल का चलन रहता है। इसे हिन्दी में बड़हल और अन्य भाषाओं में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। बंगाली -देफल दहुआ, पंजाबी– धेऊ, कन्नड़- वोते हुली, मराठी– वोटोंबे, तमिल– इलागुसम, तेलुगू- कम्मा रेगू आदि नामों से जाना जाता है। बड़हल गर्मी के मौसम का गाँव में ज्यादा प्रचलित फल है।
जंगली फलों की श्रेणी में आता है बड़हल
वर्गीकरण के आधार पर यह जंगली फलों की श्रेणी में आता है। दिखने में यह छोटे कटहल जैसा लगता है। इसका छिलका काँटेदार न होकर वेलवेट जैसा होता है। पकने पर इसका स्वाद खटमिट्ठा और रंग मिश्रित पीला-नारंगी-भूरा होता है। यह जून से अगस्त के बीच मिलता है। बड़हल का अचार, चटनी और खटाई के रूप में प्रयोग होता है। पके फल को लोग ऐसे ही खाते हैं। इसे सब्जी के रूप में भी इस्तेमाल में लाते हैं। ग्रेवी बनाने में भी इसका उपयोग कई जगहों पर किया जाता है।
पोषण से भरपूर बड़हल
पूर्व में वैज्ञानिकों द्वारा किए शोध इसके तमाम गुणों की पुष्टि करते हैं। बड़हल का पका फल पोषण से भरपूर होता है। विटामिनों से भरपूर यह फल विटामिन सी और बीटा कैरोटीन जैसे एंटी ऑक्सीडेंट का अच्छा स्रोत है। इसमें ज़िंक, कॉपर, मैगनीज़ और आइरन भी पाया जाता है जो इसके एंटी-ऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ा देता है। इस गुण की वजह से यह हृदय रोगों से बचाव और कैंसर से लड़ने में सहायक है।
बीमारियों से बचाता है बड़हल
शोधों से इसके ऐंटी इन्फ़्लेमेट्री, ऐंटी बैक्टीरियल, ऐंटी वाइरल होने के आधार मिलते हैं। बड़हल के पके फल का सेवन लिवर के लिए टॉनिक काम करता है। यह डायटिक फाइबर और पॉली फीनोल्स का भी अच्छा स्रोत है जो मोटापा, डायबिटीज़, कैंसर, हृदय रोग होने की आशंकाओं को कम करता है। साथ ही पॉली फीनोल्स न्यूरो डीजेनेरेटिव बीमारियां होने की आशंकाओं को भी कम करता है।
फल की तरह बड़हल के पेड़ के अन्य भागों से भी ऐसे तत्व प्राप्त होते हैं जो एचआईवी, हरपीज़ सिम्प्लेक्स वाइरस, हेल्मेन्थीज़, फीताकृमि, घाव, स्किन एजिंग जैसी समस्याओं से व्यक्ति को बचाने और निजात दिलाने की क्षमता रखते हैं।
यह है बेहद आम से दिखने और गांवों में आसानी से उपलब्ध फल बड़हल के तमाम गुणों की कहानी। आप इसे अपनी चर्या में शामिल कर इसके गुणों का लाभ उठा खुद को स्वस्थ बना सकते हैं।