लसोढ़ा है औषधीय गुणों की खान
पोलीसैकराईड और फास्फोरस का अच्छा स्रोत है लसोढ़ा
लसोढ़ा जंगली पादप श्रेणी का गाँव में प्रचलित फल है। परंतु वहाँ पर भी यह मध्यम प्रचलन वाला फल है। पके फल का सेवन आदिवासी और गरीब परिवारों में ज्यादा देखा गया है। इसका उपयोग उन परिवारों में भी होता है जो घरेलू नुस्खों के माध्यम से इसको औषधीय महत्व वाला मानते हैं। इस्तेमाल में लसोढ़े का अचार आम प्रचलन रेसिपी है। कुछ क्षेत्रों में इसकी सब्जी और चटनी भी बनाई जाती है। पके फलों को लोग ऐसे ही खाते हैं।
लसोढ़े का कच्चा फल हरे रंग का तथा पका फल हल्का पीला या हल्का मिश्रित पीला-नारंगी होता है। पकने पर इसका फल मीठा और बहुत लसदार होता है। मेरी समझ से शायद इसके लसदार गुण की वजह से ही इसका नाम लसोढ़ा यानि लस को ओढ़े हुये पड़ा होगा। पका लसोढ़ा जून से अगस्त में मिलता है। मार्च से मई के बीच में इसके फूल लगते हैं।
जरूर चिपकाई होगी पतंग
ग्रामीण परिवेश से लम्बे समय से दूर लोगों को लसोढ़ा धुंधला ही सही पर इस रूप में जरूर याद होगा कि गर्मियों की छुट्टियों में जब भी वे अपनी दादी या नानी के यहाँ गाँव गए होंगे तो वहाँ बच्चों के साथ लसोढ़े के लस से पतंग जरूर चिपकाई होगी।
देश में लसोढ़े की कई प्रजातियाँ पायी जाती हैं जिसे इसके फल के आकार की भिन्नता से आसानी से पहचाना जा सकता है। विभिन्न क्षेत्रों मे इसे अलग अलग नाम से पुकारा जाता है। लसोढ़े को बंगाली में (bahubara) बहुबर, गुजराती– बरगुंद (bargund), कन्नड़- चिक्का चाक (chikka chalk), मलयालम- चेरुवेरी (cheruviri), मराठी– शेल्वेंत (shelvant), तमिल– नरवल्ली (naravalli), तेलगु- चिन्न नक्केरु (chinna nakkeru) नाम से जाना जाता है।
पोषण कारकों की श्रेणी में आता है लसोढ़ा
लसोढ़े का फल गुणों से भरपूर होता है। बहुत से अध्ययन बतातें है कि लसोढ़े के गूदे में फिनोल्स, फ्लेवोनोइड्स, अल्कलोइड्स (alkaloids) और सपोनिन्स (saponins) वर्ग के तत्व प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं। इन सभी को आवश्यक पोषण कारकों की श्रेणी में रखा गया है जो बीमारियों से रक्षा, रोकथाम और इलाज में बहुत उपयोगी माने जाते हैं।
डायबिटीज़ के नियंत्रण में सहायक है लसोढ़ा
म्यूसिलेज से भरपूर यह फल पोलीसैकराईड और फास्फोरस का अच्छा श्रोत है। इसमे क्रोमियम, शुगर, कई फैटी ऐसिड और अमीनो ऐसिड भी पाये जाते हैं। क्रोमियम और पोलीसैकराईडस जिसमें म्यूसिलेज भी आता है, डायबिटीज़ के नियंत्रण में सहायक है। म्यूसिलेज कब्ज़ को दूर करने वाला (laxative) और अल्सर में आराम पहुंचाने वाला माना गया है। फास्फोरस हड्डियों और दांतों के निर्माण के लिए जरूरी होता है और चयापचयी (मेटाबोलिक) क्रियाओं में महत्व रखता है।
फैटी ऐसिड वर्ग के कई तत्व स्ट्रोक से बचाव करने, अल्सरेटिव कोलाइटिस और विभिन्न प्रकार के पेट दर्द में आराम पहुंचाते हैं। ये फैटी ऐसिड तत्व किडनी, लिवर फंक्शन को सामान्य रखने, कोशिका भित्तियों (cell membrane) और त्वचा को स्वस्थ बनाए रखने, बैक्टीरिया और वाइरस से लड़ने तथा चयापचय (मेटाबोलिज़्म) को सामान्य बनाने में सहायक होकर डायबिटीज़ और हृदय रोगों से बचाव में भी मददगार होते हैं।
अमीनो एसिड्स ऊतकों की वृद्धि और क्षतिपूर्ति में मुख्य भूमिका निभाते हैं और इस वजह से घाव पूरने में भी मददगार होते हैं। सपोनिन्स वर्ग के तत्वों में मोटापे को रोकने और कॉलेस्ट्रोल को कम करने तथा ट्यूमर को बनने से रोकने का गुण पाया जाता है।
फेनोल्स वर्ग स्ट्रैस से बचाव में सहायक है। फ्लेवोनोइड्स मुख्यतः एंटी-ऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं और हृदय रोगों और कैंसर से बचाव करने की क्षमता रखने के साथ वाइरस जनित रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी को रोकने में सहायक होते हैं।
लसोढ़े के तत्वों से स्वास्थ्य लाभ की पुष्टि हुयी शोधों में
तत्वों के इन स्वास्थ्य लाभ को ध्यान में रखते हुए लसोढ़े के गूदे पर कई शोध किए गए हैं जो इसके अल्सररोधी (Antiulcer), शोथरोधी (anti-inflammatory), दर्दनाशक (analgesic), कब्ज को दूर करने (laxative), शुगर से बचाव व रोकथाम करने (antidiabetic), लिपिड और यूरिया के बढ़े स्तर को कम करने (hypolipidimic and urea reduction), कफ़नाशक (expectorant), उम्र के प्रभाव को कम करने (anti-aging), घाव पूरक (woundhealing), लिवर को डैमेज होने से बचाने (hepatoprotective), कृमिनाशक (anthelmintic), सूजाक (gonorrhea) उपचार में सहायक, रोगाणुरोधी (Antimicrobial), ट्यूमर को बनने से रोकने (Tumour inhibition) वाले गुणों की पुष्टि करते हैं।
शोध बताते हैं कि लसोढ़े के पेड़ के अन्य भागों में भी बहुत से औषधीय गुण हैं। इस वजह से इसके पूरे पेड़ को ही औषधीय पेड़ माना गया है।